किसी रोज़ शाम के वक़्त…
सूरज के आराम के वक़्त…
मिल जाये साथ तेरा…
हाथ में लेके हाथ तेरा…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
किसी रोज़ शाम के वक़्त…
सूरज के आराम के वक़्त…
मिल जाये साथ तेरा…
हाथ में लेके हाथ तेरा…
कोई खूबसूरत सी दुआ कूबूल की उस खुदा नें
जो आमीन की तरह मुझे तुम मिले हो |
अभी तो दिल में हलकी सी खलिश महसूस होती है…
बहुत मुमकिन है कल इसका नाम मुहब्बत हो जाए …
सुनो जरा फिर से याद आ जाओ ना ..!
कुछ आँसुओ ने अर्ज़ी दी है रिहाई की ..
कौन करता है वफ़ाओं के तकाज़े तुमसे……?
हम तो एक झूठी तसल्ली के तलबगार थे बस….!!
बाज़ारे नुमाइश में , मैं क़िरदार सँभालू |
घर बार सँभालू कि तेरा प्यार सँभालू |
तमाम रात सहर की दुआएँ माँगी थीं
खुली जो आँख तो सूरज हमारे सर पर था|
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
भटकता फिर रहा है दिल किनारों की तमन्ना में
तुम्हारे इश्क़ में डूबे तो बेड़ा पार हो जाये|
मेने जज़्बात अल्फ़ाज़ अहसास सब डाल दिये
पर शायरी मुकम्मल आपकी वाह-वाह से हुई ।