सारा दिन गुजर जाता है खुद को समेटने में,
फिर रातको उसकी यादों की हवा चलती हैऔर हम फिर बिखर जाते है…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
सारा दिन गुजर जाता है खुद को समेटने में,
फिर रातको उसकी यादों की हवा चलती हैऔर हम फिर बिखर जाते है…
नहीं मुमकिन छिपा पाना खुदी को आईने में
कभी आँखें, कभी साँसें, हकीकत बोलती हैं…….
मेरा यही अंदाज ज़माने को खलता है………..की
मेरा चिराग हवा के खिलाफ क्यों जलता है….
Suraj dhalte hii ye zindagii tanha hojati hai,
Ye dil hii nhi, ye tanhaii bhi tanha hojati hai!!
लत लग गयी है मुझें तो, अब तुम्हारे साथ की..
पर गुनहगार किसको कहूँ, खुद को या तेरी अदाओं को।….
जमाना तो बड़े शोख से सुन रहा था
हमी सो गए दास्ता कहेते कहेते
कितनी मुश्किलों से…..फलक पर नजर आता है.
ईद के चाँद का अंदाज़…..बिलकुल तुम्हारे जैसा है….
वो खुद ही ना छुपा शके अपने चेहरे को नकाब मेँ…..,
बेवजह हमारी आँखो पे इल्जाम लगा दिया….!!!
Kitni muskilon se….. Falak par nazar aata hai…
Eid ke chaand ka andaaz…… Bilkul tumhare jaisa hai…..
ये जिस्म क्या है
कोई पैरहन उधार का है
यहीं संभाल कर पहना यहीं उतार चले…