जो खुद को मैं कभी मिल गया होता..
मेरे जिक्र से ये जमाना हिल गया होता…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
जो खुद को मैं कभी मिल गया होता..
मेरे जिक्र से ये जमाना हिल गया होता…
इन्सान कम थे क्या..
जो अब
मोसम भी धोखा देने लगे..
वाह रे खुदा तेरे बनाये बंदो
की फितरत पर रोना आया
मुझे तो खिलौनो से खेलने का शौंक था,
उसने मुझे ही खिलौना
बनाया……….
टूटे हुए प्याले में जाम नहीं आता
इश्क़ में मरीज
को आराम नहीं आता
ऐ मालिक बारिश करने से पहले ये सोच तो
लिया होता
के भीगा हुआ गेहू किसी काम नहीं
आता
मुझे दर्द से शिकवा नहीं है ए खुदा…
बस दर्द में
मुस्कुराने की अदा मुझे बख्शते रहना…॥
ये सोचाकर रात में सब को याद करके सोता हूँ…
ना जाने
कौन सी रात जीवन की आखरी रात हो॥
इतनी
नफरत थी उसे मेरी मोहब्बत से ,
उसने हाथ जला डाले,मुझे तक़दीर
से मिटाने के लिए.
सात जन्मों तक साथ निभाने का वादा
करने वाले,
‘रोमिंग’ में
जाते ही
फोन उठाना छोड़ देते है!!
त्याग दी सब ख्वाहिशे,
निष्काम बनने के लिए,..
राम ने खोया बहुत कुछ,
श्रीराम बनने के लिए…।।
चलो कुछ बेर चुन लें
कल अपने काम आएँगे,
हम सब की
झोंपड़ी में भी
कभी तो राम आएँगे…