ख़ाक से बढ़कर

ख़ाक से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती,
छोटी मोटी बात पे हिज़रत नहीं होती।
पहले दीप जलें तो चर्चे होते थे,
अब शहर जलें तो हैरत नहीं होती।

न जाने कब

न जाने कब खर्च हो गये, पता ही न चला,
वो लम्हे, जो छुपाकर रखे थे जीने के लिये।