तू तो नफ़रत

तू तो नफ़रत भी न कर पाएगा उस शिद्दत के साथ,
जिस बला का प्यार तुझसे बे-ख़बर मैंने किया |

दो अक्षर की

दो अक्षर की मौत
और तीन अक्षर के जीवन में,

ढाई अक्षर का दोस्त हमेंशा बाज़ी मार जाता हैं…..

कितनी ज़ालिम है

ये बारिश भी कितनी ज़ालिम हे जो यूँ ही आकर चली जाती है…
..
याद दिलाती है मेरे मेहबूब की..
और भिगोकर मुझे चली जाती है……