जिस नजाकत से…

जिस नजाकत से…
ये लहरें मेरे पैरों को छूती हैं..
यकीन नहीं होता…
इन्होने कभी कश्तियाँ डुबोई होंगी…

इक मुद्दत से

इक मुद्दत से कोई तमाशा नहीं देखा बस्ती ने

कल बस्ती वालों ने मिल-जुलकर मेरा घर फूंक दिया