न जाने किसने, पढ़ी है मेरे हक़ में दुआ…
आज तबियत में जरा आराम सा है…
Category: वक़्त शायरी
तुझे रात भर
तुझे रात भर ऐसे याद करता हूँ मैं जैसे सुबह इम्तेहान हो मेरा ।
हुस्न वालों का
हुस्न वालों का वजन ही इतना होता है
कि दिल में बैठाते ही दिल टूट जाता है |
बस इसी बात पे
बस इसी बात पे फांसला रखा मैं ने.. वो..करीब था..हर किसी के..!!
फ़रार हो गई होती
फ़रार हो गई होती कभी की रूह मेरी !
बस एक जिस्म का एहसास रोक लेता है !!
ज़िँदगी का खेल अकेले नहीँ
ज़िँदगी का खेल अकेले नहीँ खेला जाता..
हमारी तो टीम है आ जाओ या बुला लो . . .
वैसे ही दिन वैसी ही रातें
वैसे ही दिन वैसी ही रातें ग़ालिब, वही रोज का फ़साना लगता है
महीना भी नहीं गुजरा और यह साल अभी से पुराना लगता है……
हमको अब उनका…
हमको अब उनका…. वास्ता ना दीजिए ….
हमारा अब उनसे…. वास्ता नहीं…
अब कोई नक्शा नही
अब कोई नक्शा नही उतरेगा इस दिल की दीवार पर….!!
तेरी तस्वीर बनाकर कलम तोड़ दी मैंने…
आज फिर मुमकिन नही
आज फिर मुमकिन नही कि मैं सो जाऊँ…
यादें फिर बहुत आ रही हैं नींदें उड़ाने वाली