मुफ़लिस के बदन को भी है चादर की ज़रूरत,
अब खुल के मज़ारों पर ये ऐलान किया जाए..!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मुफ़लिस के बदन को भी है चादर की ज़रूरत,
अब खुल के मज़ारों पर ये ऐलान किया जाए..!!
जिसके लिए लिखता हूँ आज कल वो कहती हैं अच्छा लिखते हो… उनको सुनाऊँगी….
बदन तो खुश हैँ खुद पर रेशमी कपड़ो को पाकर
मग़र ज़मीर रो रहा हैं की मैं बिक गया कैसे…..
मजबूर किया तुमने नज़र अंदाज़ करने पर
वरना हम तो तेरे हर अंदाज पर तेरी नज़र उतारा करते थे…..
बदन की क़ैद से बाहर,ठिकाना चाहता है
अजीब दिल है,कहीं और जाना चाहता है|
मैं इस दिल में सबको आने देता हूँ ,
पर कभी शक मत करना क्युकि जहाँ तुम रहती हो वहाँ में किसी को जाने भी नहीं देता…!!
कभी खो लिया
कभी पा लिया
कभी रो लिया
कभी गा लिया
कभी छीन लेती है हर ख़ुशी
कभी मेहरबान बेहिसाब है।
ये जो ज़िन्दगी की किताब है
ये किताब भी क्या किताब है
कभी इक हसीं सा ख्वाब है
कभी जानलेवा अज़ाब है।
कोई ढूंढ लाओ उसकोवापस मेरी ज़िन्दगी में…
ज़िन्दगी अब साँसे नहीं,उसका साथ मांग रही है…
जो निखर कर बिखर जाये वो “कर्तव्य”है…!
और जो बिखर कर निखर जाए वो “व्यक्तित्व” हैं…!