देते नहीं दाद …. कभी वो कलाम पे मेरे,
जुड़ न जाए कहीं नाम उनका नाम से मेरे
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
देते नहीं दाद …. कभी वो कलाम पे मेरे,
जुड़ न जाए कहीं नाम उनका नाम से मेरे
कौन कहता है हम दुनिंया से खाली हाथ जायेगे ,तेरा नाम रूह पे लिखवा कर आयेगे ॥
सहम उठते हैं कच्चे मकान, पानी के खौफ़ से,
महलों की आरज़ू ये है की, बरसात तेज हो…
रहने दो अब कोशिशे , तुम मुझे पढ़ भी ना सकोगे..
बरसात में कागज की तरह भीग के मिट गया हूँ मैं…
जीब लहजे में पूछी थी खैरियत उसने…जवाब देने से पहले छलक गई आँखें मेरी…
नज़र बन के कुछ इस क़दर
मुझको लग जाओ..!!
कोई पीर की फूँक
न पूजा न मन्तर काम आये….!!!!
उन्होंने बहुत कोशिश की,
मुझे मिट्टी में दबाने की
लेकिन उन्हें मालूम नहीं
था कि मैं “बीज” हूँ…..
शुक्र है ख़्वाबों ने रात सम्भाली हुई है
वरना.. नींद किसी काम की नहीं यारों ..
न दोज़ख़ से,न ख़ून की लाली से डर लगता है,
कौन हैं ये लोग,इनको क़व्वाली से डर लगता है।
तुम पुछते थे ना..कितना प्यार है मुझसे…
लो अब गीन लो … बूंदे बारिश की..!!!!