दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की,
लोगों ने मेरे घर से रास्ते बना लिए
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की,
लोगों ने मेरे घर से रास्ते बना लिए
करीब आ जाओ जीना मुश्किल है तुम्हारे बिना,
दिल को तुम से ही नही, तुम्हारी हर अदा से मोहब्बत है…
आज भी आदत में शामिल है,
उसकी गली से होकर घर जाना.
इधर आओ जी भर के हुनर आज़माएँ,
तुम तीर आज़माओ, हम ज़िग़र आज़माएँ..
ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं
फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं
ज़िंदगी कम लगे ऐसी मोहब्बत चाहिए,
मुझे अपने वजूद की पूरी कीमत चाहिए…!
और भी शेर है लिखने को तिरंगा तो कम से कम साफ़ रहने दो भाई
ये बात मुझे आज तक समझ नहीं आई..
तुमहे मैं “सुकुन” बुलाऊ या “बेचैनी”..
कब आ रहे हो मुलाकात के लिये,
हमने चाँद रोका है, एक रात के लिये…!!
तुम तो फुहार सी थीं….
पर तुम्हारी यादें… मूसलाधार हैं…