बेजुबान पत्थर पे लदे है करोंडो के गहने मंदिरो में ।उसी दहलीज पर एक रूपये को तरसते नन्हें हाथों को देखा है।
Category: व्यंग्य
खाली हाथ लेके
खाली हाथ लेके जब घर जाता हूँ मैं
मुस्कुरा देते हैं बच्चे और फिर से मर जाता हूँ मैं|
जीने का ज्यादा तजुर्बा
मुझे ज़िन्दगी जीने का ज्यादा तजुर्बा तो नहीं हैं
पर सुना है लोग सादगी से जीने नहीं देते|
हिचकियों में वफ़ा को
हिचकियों में वफ़ा को ढूँढ रहा था मैं..!
कमबख्त गुम हो गई…दो घूँट पानी से .. !!
वापस आ रही है
वापस आ रही है, फिर वही सर्दियों की उदास शामें…..
फिर तुम बेसबब ,बेहद याद आओेगे…!!
सर झुका के बोलें
पूछा हाल शहर का तो सर झुका के बोलें,,,,
लोग तो जिंदा हैं जमीरों का पता नहीं.!!
तब्दीली जब भी आती है
तब्दीली जब भी आती है मौसम की अदाओं में
किसी का यूँ बदल जाना बहुत ही याद आता है …
माँ बाप के अलावा
आपके माँ बाप के अलावा कोई भी शख्स आपका निःस्वार्थ भला नही चहता
क्या उम्मीदें होंगी
उस गरीब की भी, क्या उम्मीदें होंगी जिंदगी से
जिसकी साँसे भी, गुब्बारों में बिकती हैं..!
छोड़ रहा हूँ
छोड़ रहा हूँ लफ़्ज़ों तुमको तुम्हारे हाल पे,
ढूंढ लो फिर कोई अधूरी मोहब्बत खुद के लिए…!!!