इंतज़ार की आरज़ू

इंतज़ार की आरज़ू अब खो गयी है,
खामोशियो की आदत हो गयी है,
न शिकवा रहा न शिकायत किसी से,
अगर है… तो एक मोहब्बत,
जो इन तन्हाइयों से हो गई है ।

गिरा ना पाओगे

गिरा ना पाओगे लाख चाहकर भी मेरी शख्सियत को,
मेरा कारवां मेरे चाहने वालों से चलता हैं न की नफरत करने वालों से…!!!

मत तरसा किसी को

मत तरसा किसी को इतना,अपनी मोहब्बत के लिये..

क्या पता तेरी ही मोहब्बत पाने के लिए, जी रहा हो कोई….

कुछ तो है

कुछ तो है जो बदल गया
जिन्दगी में मेरी…

अब आइने में चेहरा मेरा
हँसता हुआ नज़र नहीं आता

कहाँ ये जानते थे

कहाँ ये जानते थे
कि
रस्में उल्फ़त कभी यूँ भी निभानी होगी,
तुम सामने भी होंगे और…
हमें नज़रे झुकानी होगी