हर मर्ज की दवा है वक्त ..
कभी मर्ज खतम,
कभी मरीज खतम..।
Category: व्यंग्य शायरी
गिनती तो नहीं याद
गिनती तो नहीं याद, मगर याद है इतना
सब ज़ख्म बहारों के ज़माने में लगे हैं…
कागज़ कलम मैं
कागज़ कलम मैं तकिये के पास रखता हूँ,
दिन में वक्त नहीं मिलता,मैं तुम्हें नींद में लिखता हूँ..
हम उसके बिन हो गये है
हम उसके बिन हो गये है सुनसान से,
जैसे अर्थी उठ गयी हो किसी मकान से !!
तुम रूक के नहीं
तुम रूक के नहीं मिलते हम झुक के नहीं मिलते
मालूम ये होता है कुछ तुम भी हो कुछ हम भी|
मिट्टी का बना हूँ
मिट्टी का बना हूँ महक उठूंगा…
बस तू एक बार बेइँतहा ‘बरस’ के तो देख……
कसक पुराने ज़माने की
कसक पुराने ज़माने की साथ लाया है,
तिरा ख़याल कि बरसों के बाद आया है !!
मैं अपने शहर के
मैं अपने शहर के लोगों से ख़ूब वाकिफ़ हूँ
हरेक हाथ का पत्थर मेरी निगाह में है|
जीत कर मुस्कुराए तो
जीत कर मुस्कुराए तो क्या मुस्कुराए
हारकर मुस्कुराए तो जिंदगी है….
सौदेबाजी का हुनर
सौदेबाजी का हुनर कोई उनसे सीखे,
गालों का तिल दिखाकर सीने का दिल ले गये !