मेरे शहर मे खुदाओं की कमी नही दिक्कत तो मुझे
आज भी इन्सान ढूंढने मे आती है..!!
Category: व्यंग्य शायरी
अपनी बाँहों में
अपनी बाँहों में ले के सोता हूँ,
मैंने तकिये का नाम ‘तुम’ रखा है..
हमें मालूम है
हमें मालूम है हम से सुनो महशर में क्या होगासब उस को देखते होंगे वो हम को देखता होगा।।
तू है…यादें हैं…
तू है…यादें हैं…और ग़म भी हैं…..
इन सब में…..थोड़े से…हम भी हैं…
कुछ नहीं मिलता
कुछ नहीं मिलता दुनिया में मेहनत के बगैर..
मेरा अपना साया भी धूप में आने से मिला…!
लाख कसमें ले लो
लाख कसमें ले लो किसीसे,
छोड़ने वाले छोड़ ही जाते है !!
सीख कर गयी है
सीख कर गयी है वो मोहब्बत मुझसे
जिससे भी करेगी बेमिसाल करेगी..!!
मेरे होंठों पे
मेरे होंठों पे दिखावे का तबस्सुम है मगर
मेरी आंखों में उदासी के दिए जलते हैं|
मेरी फ़ितरत कि
मेरी फ़ितरत कि मैं खिल जाता हूँ बे-मौसम भी
मेरी आदत कि मैं मजबूर नहीं हो सकता !
मुझे महका कर
मुझे महका कर गुजर गया..
वो झोंका जो तुझे छूकर आया था..