जो चेहरे कभी दिखते नही थे मोहल्लों मे।

जो चेहरे कभी दिखते नही थे मोहल्लों मे।
भूकंप ने सबका दीदार करा दिया।
न नमाज़ दिखी न अज़ान दिखी |
न भजन दिखा न कीर्तन दिखा |
न हिन्दू दिखा न मुसलमान
दिखा…|
घर से भागता हुआ बस इंसान दिखा…||

जिम्मेदारियां मजबूर कर देती हैं

जिम्मेदारियां मजबूर कर देती हैं अपना शहर छोड़ने को,
वरना कौन अपनी गली मे
जीना नहीं चाहता…..
हसरतें आज भी खत लिखती हैं मुझे,
पर मैं अब पुराने पते पर नहीं रहता ।।