बरसों गुज़र गये

बरसों गुज़र गये , रो कर नही देखा,
आँखों में नींद थी,सो कर नही देखा,,

वो क्या जाने दर्द मोहब्बत का,
जिसने किसी को खो कर नही देखा

नए कमरों में

नए कमरों में अब चीज़ें पुरानी कौन रखता है
परिन्दों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है