उसकी चाहत का मैं ,और क्या सबूत दूँ ….
उसने लगाई भी
बिंदी तो मेरी आँखों में देख कर…!!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
उसकी चाहत का मैं ,और क्या सबूत दूँ ….
उसने लगाई भी
बिंदी तो मेरी आँखों में देख कर…!!!
उजालो में जिस्म
चमकते है अँधेरों में रूहें……….!
लकीर खींच के बैठी है तिश्नगी मेरी बस एक ज़िद है कि दरिया यहीं पे आएगा
मिट्टी में
मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता
अब इस से ज़ियादा मैं तेरा हो नहीं
सकता
“हर खुशी दिल के करीब
नहीं होती,
ज़िंदगी ग़मों से दूर नहीं होती,
इस दोस्ती को संभाल कर
रखना,
क्यूंकि दोस्ती हर किसी को नसीब नहीं होती
वो बोले मोहब्बत का सागर बहुत गहरा है साकी
हम बोले डूबने वाले कभी परवाह नहीं किया करते..
मैंने आंसू को समझाया,
भरी महफ़िल में ना आया
करो,
आंसू बोला, तुमको भरी महफ़िल में तन्हा पाते है,
इसीलिए तो
चुपके से चले आते है
अब तो कर दे इजहार तू
मुझसे प्यार का…..
देख अब तो मोहब्बत का महीना भी
आ गया…
जब वो अपने हांथो की
लकीरों में मेरा नाम ढूंढ कर थक गया…
सर झुकाकर बोला, “लकीरें
झूठ बोलती है” तुम सिर्फ मेरी हो.
इतनी पीता हूँ कि मदहोश रहता हूँ;
सब कुछ समझता हूँ पर खामोश रहता हूँ;
जो लोग करते हैं मुझे
गिराने की कोशिश;
मैं अक्सर उन्ही के साथ रहता हूँ।