क़लम नुकीली बहुत है हमारी
डरते है कभी किसी के कलेजे पर न चल जाये |
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
क़लम नुकीली बहुत है हमारी
डरते है कभी किसी के कलेजे पर न चल जाये |
तन्हाई की दीवारो पे घुटन का पर्दा झूल रहा है
बेबसी की छत के नीचे कोई किसी को भूल रहा है|
तनहा तनहा रो लेंगे, महफ़िल महफ़िल जाएंगे
जब तक आंसू साथ रहेंगे तब तक गीत सुनाएंगे
तुम जो सोचो वह तुम जानो हम तो अपनी कहते हैं
देर न करना घर जाने में वरना घर खो जाएंगे
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो
चार किताबें पढ़ कर वह भी हम जैसे हो जाएंगे
किन राहों से दूर है मंज़िल, कौन सा रास्ता आसाँ है
हम जब थक कर रुक जाएंगे, औरों को समझाएंगे
अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर दिल हों, मुमकिन है
हम तो उस दिन राय देंगे जिस दिन धोखा खाएंगे|
गिला बनता ही नही बेरुखी का
इंसान ही तो था बदल गया होगा|
हम अपने रिश्तो के लिए वक़्त नहीं निकाल सके
फिर वक़्त ने हमारे बीच से रिश्ता ही निकाल दिया |
घर की इस बार मुकम्मल मै तलाशी लूँगा
ग़म छुपा कर मेरे माँ बाप कहाँ रखते है|
तेरे हुस्न से कितना मुख़्तलिफ़ तेरी ज़ात का पहलू
इतने नर्म होंठो से कितना सख़्त बोलते हो तुम|
कभी टूटा नहीं मेरे दिल से तेरी यादों का सिलसिला,
गुफ्तगू जिससे भी हुई पर खयाल तेरा ही रहा…!!
मतलबी दुनिया के लोग खड़े है,हाथों में पत्थर लेकर ,
मैं कहाँ तक भागूं ,शीशे का मुकद्दर लेकर!!
बच्चे की मुस्कान, आपके गिरे चेहरे को भी
मुस्कुराने पर मज़बूर कर देता है।