कुछ जख़्मों की कोई उम्र नही होती…साहेब
ताउम्र साथ चलते है ज़िस्म के ख़ाक होने तक…….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कुछ जख़्मों की कोई उम्र नही होती…साहेब
ताउम्र साथ चलते है ज़िस्म के ख़ाक होने तक…….
मुख्तसर सी जिंदगी मेरी तेरे बिन बहुत अधूरी है,
इक बार फिर से सोच तो सही की क्या तेरा खफा रहना बहुत जरूरी है !!
कहती है मुझसे की तेरे साथ रहूँगी सदा,
बहुत प्यार करती है, मुझसे तन्हाई मेरी !!
काश पगली तेरे दिल के भी चुनाव होते कम से कम उमीद्दवार बनके तेरे सामने तो खडे होते.!
जिस नजाकत से…
ये लहरें मेरे पैरों को छूती हैं..
यकीन नहीं होता…
इन्होने कभी कश्तियाँ डुबोई होंगी…
जुदाइयाँ तो मुक़द्दर हैं फिर भी जान-ए-सफ़र,
कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं।
चल ना यार हम फिर से मिट्टी से खेलते हैं हमारी उम्र क्या थी जो मोहब्बत से खेल बैठे|
अब हमारा जिक्र भी तो होना चाहिए
हीर-रांझा की कहानी आखिर कब तक|
कुछ इस कदर बीता है मेरे बचपन का सफर दोस्तों
मैने किताबे भी खरीदी तो अपने खिलौने बेचकर
इक मुद्दत से कोई तमाशा नहीं देखा बस्ती ने
कल बस्ती वालों ने मिल-जुलकर मेरा घर फूंक दिया