ज़रूरी तो नहीं था हर चाहत का मतलब इश्क़ हो;
कभी कभी कुछ अनजान रिश्तों के लिए दिल बेचैन हो जाता है।
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
ज़रूरी तो नहीं था हर चाहत का मतलब इश्क़ हो;
कभी कभी कुछ अनजान रिश्तों के लिए दिल बेचैन हो जाता है।
एक माटी का दिया सारी रात अंधियारे से लड़ता है,
तू तो खुदा का दिया है किस बात से डरता है…….
बूँद बूँद करके मुझमे मिलना तेरा,
उफ़्फ़, मुझमें मुझसे ज्यादा होना तेरा…..
इतने जख्म थे दिल पे मेरे कि हकीम भी बोल
पडा..ईलाज से बेहतर है कि तू मर ही जा ..!!
उनकी चाहत में हम कुछ यूँ बंधे हैं
कि वो साथ भी नहीं और हम अकेले भी नहीं…!
महफ़िल भले ही प्यार वालों की हो…
उसमे रौनक तो दिल टुटा हुआ शराबी ही लाता हैं…
मोहबत करो उस रब से फरेब की जरूरत नही पड़ेगी
माफ़ करेगा लाखो गुनाह कहने की जरूरत नही पड़ेगी|
कोई इल्जाम रह गया हो तो वो भी दे दो..
पहले भी हम बुरे थे, अब थोड़े और सही…!!
यादों की चिलमन बनाके यादों को दरकिनार किया
फिर याद-ए-मोमिन लिए, यादों को ला’-तज़ार किया ।।
पास आकर सभी दूर चले जाते हैं;
अकेले थे हम, अकेले ही रह जाते हैं;
इस दिल का दर्द दिखाएँ किसे;
मल्हम लगाने वाले ही जखम दे जाते हैं!