शहर लौटने की फ़िक्र
अब मेरे चेहरे पे जारी है..
चंद पैसों की नौकरी
माँ की ममता पे भारी है…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
शहर लौटने की फ़िक्र
अब मेरे चेहरे पे जारी है..
चंद पैसों की नौकरी
माँ की ममता पे भारी है…
चल तलाशते है..
कोई तरीका ऐसा…
मंद हवा भी बहे…
और
चिराग भी जले…
झुके थे तेरे आगे..
बिके नहीं थे..
जो इतना गुमान कर गयी..
मोहब्बत ठंड जैसी है साहब
लग जाये तो
बीमार कर देती है।
मेरे लिये ना सही इनके लिये आ जाओ ……..
तेरा बेपनाह इन्तजार करती हैं आँखें .
पहले में देख देख के पढ़ता था
फिर मेने याद कर लिया उसे |
काश वो आकर कहे,
एक दिन मोहब्बत से……!!
ये बेसब्री कैसी ?
तेरी हूँ, तसल्ली रख…!!
क्या गलतियां की हमने
कभी नहीं बताया उन्होंने…
बस प्यार घटता गया फासले बढ़ते गए ….
मैनें बस उसको पाने
कि जिद कि थी ….
खुद को खोने का
कोई ईरादा नही था ….
कीजिए फ़ैसला..एहसान नहीं..
अगर मैं बर्दाश्त नहीं..!!