इस तरह ज़िन्दगी में मुझे तेरा साथ चाहिये,
जैसे बच्चे को भीड़ में एक हाथ चाहिए.
Category: मौसम शायरी
उम्मीदों से बंधा
उम्मीदों से बंधा एक जिद्दी परिंदा है इंसान,
जो घायल भी उम्मीदों से है और जिन्दा भी उम्मीदों पर है…
चखे हैं जाने कितने
चखे हैं जाने कितने जायके महंगे मगर ऐ माँ,
तेरी चुल्हे की रोटी सारे पकवानो पे भारी है…
खुल जाती हैं
खुल जाती हैं गाँठें बस जरा से जतन से,
मगर लोग कैंचियां चलाकर सारा फ़साना बदल देते हैं…!!!!
नाराज़गी बहुत है
नाराज़गी बहुत है हम दोनों के दरमियान…!!!
वो गलत कहता है कि कोई रिश्ता नहीं रहा…!!!
कभी टूटा नही
कभी टूटा नही मेरे दिल से तेरी याद का रिश्ता…
गुफ़्तुगू जिस से भी हो ख़याल तेरा ही रहता है..
सख़्त हाथों से
सख़्त हाथों से भी….
छूट जाती हैं कभी उंगलियाँ….
रिश्ते ज़ोर से नहीं….
तमीज़ से थामे जाते हैं….
नजाकत तो देखिये
नजाकत तो देखिये साहेब..चांद सा जब कहा उनको..
तो कहने लगी..चांद कहिये ना ये चांद सा क्या है..
खुद को गलत भी
खुद को गलत भी….
सही आदमी ही मान सकता है….!!
दूर रह कर भी
उसका नजर से दूर रह कर भी, मेरी हर सोंच में हमेशा रहना…..
किसी के पास रहने का तरीका हो,
तो ऐसा ही हो….