उम्र भर कुछ ख़्वाब दिल पर दस्तकें देते रहे,
हम कि मजबूर-ए-वफ़ा थे आहटें सुनते रहे…
Category: बेवफा शायरी
लाख हुस्न-ए-यकीं
लाख हुस्न-ए-यकीं से बढकर है।।
इन निगाहों की बदगुमानी भी।।
आया न एक बार भी
आया न एक बार भी अयादत को वह मसीह, सौ बार मैं फरेब से बीमार हो चुका।
उस एक शब के
उस एक शब के सहारे कट रही है हयात, वो एक शब जो तेरी महफिल में गुजार आये।
वो इस तरह
वो इस तरह मुस्कुरा रहे थे , जैसे कोई गम छुपा रहे थे……!
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बारिश में भीग के आये थे मिलने, शायद वो आंसु छुपा रहे थे…!!
नाराजगी गैरों से
नाराजगी गैरों से की जाती है अपनों से नहीं,
तू तो गैर था हम तो अपने दिल से नाराज़ हैं.!!
वक़्त ही कुछ
वक़्त ही कुछ ऐसा आ ठहरा है अब…
यादें ही नहीं होतीं याद करने के लिए…
कोई बताये की
कोई बताये की मैं इसका क्या इलाज करूँ
परेशां करता है ये दिल धड़क-धड़क के मुझे……….
बात का ज़ख्म है
बात का ज़ख्म है तलवार के ज़ख़्मो के सिवा ।
कीजे क़त्ल मगर मुँह से कुछ इरशाद न हो ।।
मेरे होकर भी
मेरे होकर भी मेरे खिलाफ चलते हैं…
मेरे फैसले भी देख तेरे साथ चलते हैं!!