बेटियां मां की परछाईय़ाँ होती हैं….
और पापा का गरूर |
Category: बेटी शायरी
सियासत मुल्क में
सियासत मुल्क में शायद है इक कंगाल की बेटी
हर इक बूढा उसे पाने को कैसे छटपटाता है
गुजारा कर लेती है
चीखकर हर जिद पूरी करवाता है
इकलौता बेटा!!
मगर बिटिया गुजारा कर लेती है टूटी पायल
जोड़कर!!!
लिपट जाता हूँ माँ
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है
उछलते खेलते बचपन में बेटा ढूँढती होगी
तभी तो देख कर पोते को दादी मुस्कुराती है
तभी जा कर कहीं माँ-बाप को कुछ चैन पड़ता है
कि जब ससुराल से घर आ के बेटी मुस्कुराती है
चमन में सुबह का मंज़र बड़ा दिलचस्प होता है
कली जब सो के उठती है तो तितली मुस्कुराती है
हमें ऐ ज़िन्दगी तुझ पर हमेशा रश्क आता है
मसायल से घिरी रहती है फिर भी मुस्कुराती है
बड़ा गहरा तअल्लुक़ है सियासत से तबाही का
कोई भी शहर जलता है तो दिल्ली मुस्कुराती है ।
हवाओ जैसी
रुके तो चाँद जैसी हैँ…..
चले तो हवाओ जैसी हैँ…..
वो माँ ही हैँ…..
जो धुप मैँ भी छाँव जैसी हैँ….
ख़ुबसूरत था इस
ख़ुबसूरत था इस क़दर के महसूस ना
हुआ..
कैसे,कहाँ और कब मेरा बचपन चला गया….
लौटा देता कोई
लौटा देता कोई
एक दिन
नाराज़ हो कर …
काश बचपन भी मेरा
कोई अवॉर्ड होता…
ऐ उम्र कुछ
ऐ उम्र कुछ कहा मैंने,
शायद तूने सुना नहीं….
तू छीन सकती है बचपन मेरा , बचपना नहीं…
इस बनावटी दुनिया में
इस बनावटी दुनिया में
कुछ सीधा सच्चा रहने दो,
तन वयस्क हो जाए चाहे, दिल तो बच्चा रहने दो,
नियम कायदो
की भट्टी में पकी तो जल्दी चटकेगी,
मन की मिट्टी को थोडा सा तो गीला, कच्चा रहने दो|
ये है ज़िन्दगी
ये है ज़िन्दगी किसी के घर आज नई कार आई
और किसी के घर मां की दवाई उधार आई..