एहतियातन मेरी हिम्मत

इसे

सामान-ए-सफ़र मान, ये जुगनू रख ले,
राह में तीरगी होगी, मेरे

आंसू रख ले,

तू जो चाहे तो तेरा झूठ भी बिक सकता है,
शर्त इतनी

है के सोने का तराजू रख ले,

वो कोई जिस्म नही है जिसे छु भी

सके,
अगर नाम ही रखना है तो खुशबु रख ले,

तुझको अनदेखी

बुलंदी में सफ़र करना है,
एहतियातन मेरी हिम्मत, मेरे बाज़ू रख ले,

मेरी ख्वाइश है के आँगन में दीवार न उठे,
मेरे भाई मेरे हिस्से की

ज़मी तू रख ले….

दिल के उजले

दिल के उजले कागज़ पर हम कैसा गीत लिखें
बोलो तुमको ग़ैर लिखें या अपना मीत लिखें

नीले अम्बर की अंगनाई में तारों के फूल
मेरे प्यासे होटों पर है अंगारों के फूल
इन फूलों को आख़िर अपनी हार या जीत लिखें

कोई पुराना सपना दे दो और कुछ मीठे बोल
लेकर हम निकले हैं अपनी आखों के कश्कोल
हम बंजारे, प्रीत के मारे, क्या संगीत लिखें

शाम खड़ी है एक चमेली के प्याले में शबनम
जमुना जी के ऊंगली पकड़े खेल रहा है मधुबन
ऐसे में गंगा जल से राधा की प्रीत

बुझने लगी हो

बुझने लगी हो आंखे तेरी, चाहे थमती हो रफ्तार
उखड़ रही हो सांसे तेरी, दिल करता हो चित्कार
दोष विधाता को ना देना, मन मे रखना तू ये आस
“रण विजयी” बनता वही, जिसके पास हो “आत्मविश्वास”

मुमकिन नहीं की

कोई तो लिखता होगा इन कागजों और पत्थरों का भी नसीब ।

वरना मुमकिन नहीं की कोई पत्थर ठोकर खाये और कोई पत्थर भगवान बन जाए ।

और कोई कागज रद्दी और कोई कागज गीता और कुरान बन जाए ।।

नफ़रत फैलाने वाला

ना हिंदू बुरा है,
ना मुसलमान बुरा है,
ना गीता बुरी है,
ना कुरान बुरा है,
ना खुदा बुरा है,
ना भगवान बुरा है,
नफ़रत फैलाने वाला,
हर शैतान बुरा है..!!

अपनी कोशिश को

सफलता कभी भी ‘पक्की’ नहीं होती,

तथा असफलता कभी भी ‘अंतिम’ नहीं होती !!

इस लिए अपनी कोशिश को,

तब तक जारी रखो,

जबतक आपकी ‘ जीत ‘,

एक ‘इतिहास’ ना बन जाये!!

मेरा है मुझमें

अलग दुनिया से हटकर भी कोई दुनिया है मुझमें,
फ़क़त रहमत है उसकी और क्या मेरा है मुझमें.
मैं अपनी मौज में बहता रहा हूँ सूख कर भी,
ख़ुदा ही जानता है कौनसा दरिया है मुझमें.
इमारत तो बड़ी है पर कहाँ इसमें रहूँ मैं,
न हो जिसमें घुटन वो कौनसा कमरा है मुझमें.
दिलासों का कोई भी अब असर होता नहीं है,
न जाने कौन है जो चीख़ता रहता है मुझमें.
नहीं बहला सका हूँ ज़ीष्त का देकर खिलौना
कोई अहसास बच्चे की तरह रोता है मुझमें.
सभी बढ़ते हुए क्यों आ रहे हैं मेरी जानिब,
कहाँ जाता है आखि़र कौनसा रस्ता है मुझमें.

बुरा मान गये!

गले से

उन को लगाया तो बुरा मान गये!
यूँ नाम ले के बुलाया तो बुरा मान गये!

ये हक़ उसी ने दिया

था कभी मुज को लेकिन;
जो आज प्यार जताया तो बुरा मान गये!

जो मुद्द्तों से मेरी नींद

चुरा बैठे है;
में उस के ख्वाब में आया तो बुरा मान गये!

जब कभी साथ में होते थे, गुनगुनाते

थे;
आज वो गीत सुनाया तो बुरा मान गये!

हंमेशा खुद ही निगाहों से वार करते थे;
जो तीर

हम ने चलाया तो बुरा मान गये!