जहाँ दुसरो को समझाना कठिन हो..
तो वहाँ खुद को समझा लेना चाहिए…
Category: प्रेणास्पद शायरी
भले ही मैं अपने पिताजी की कुर्सी पर बेठ जाता हूँ
भले ही मैं अपने पिताजी की कुर्सी पर बेठ जाता हूँ ,
पर आज भी अनुभव के मामले मे मैं उनके घुटनो तक ही आता हूँ ।
अब पता चला
अब पता चला…
आसमान बरस नहीं…
रो रहा था…
वो जानता था…
एक फरिश्ता आज…
हमेशा के लिए…
सो रहा था…
वो दौर ऐ बचपन था
लकीरे है तो रहने दो
जिंदगी एक पल है
जिंदगी एक पल है,
जिसमें न आज है न कल है,
जी लो इसको इस तरह,
कि जो भी आपसे मिले वो यही कहे,
बस यही ‘मेरी’ जिंदगी का सबसे हसीन पल है.
जनाज़ा इसीलिए भारी था
जनाज़ा इसीलिए भारी था उस गरीब का…!!
क्योकि वह सारे अरमान साथ लेकर चला गया…!!
में जो समझता हु
में जो समझता हु और हर कोई नहीं समझता और
जो लोग समझते है वो मुझे नहीं समझना.
मत सोना कभी किसी
मत सोना कभी किसी के कन्धे पर सर रख कर,
जब ये बिछडते हे तो रेशम के तकिये पर भी नीँन्द नहीँ आती..
जो सिरफिरा होते हैं
जो सिरफिरा होते हैं इतिहास वो ही लिखते हैं,
समझदार तो सिर्फ़ उसे पढ़ते हैं