मौजों ने सहारा दिया है

मौजों ने सहारा दिया है कभी-कभी
तूफां में किनारा मिला है कभी-कभी

दिल खुद से बेनियाज़ रहा
तेरी याद में
ऐसा भी वक्त़ हमने
गुजारा है कभी-कभी

दिल में भड़क उठी है
ग़म-ए-बेकसी की आग
भड़का है आरजू का
गगरा कभी-कभी

एक बेवफा की याद में
नक्शे ज़हन पर
धुंधला सा एक नक्श
उभरा है कभी-कभी|

ज़माने के काम

हम सायादार पेड़ ज़माने के काम आये
जब सूखने लगे तो जलाने के काम आये

तलवार की नयाम कभी फेंकना नहीं
मुमकिन है दुश्मनों को डराने के काम आये

कच्चा समझ के बेच न देना मकान को
शायद कभी ये सर को छुपाने के काम आये।

जीने की लिए

जीने की लिए जैसे एक मुस्कुराहट ही काफी है
मरने की लिए वैसे ही एक गम की काफी है
कभी कभी एक गम पर एक मुस्कान ही काफी है
उसी तरह अगर मुस्कान अगर गम से पिछड़ जाए
वो गम उसे वहां ले जाता है जहाँ उसे नही जाना चाहिए|