तुम क्या बिछड़े भूल गये रिश्तों की शराफ़त हम,
जो भी मिलता है कुछ दिन ही अच्छा लगता है..!!
Category: प्यारी शायरी
मजबूरियाँ हैं कुछ मेरी
मजबूरियाँ हैं कुछ मेरी मैं बेवफा नहीँ
सुन यह वक्त बेवफा है मेंरी खता नहीँ ।
हैं फासले जो दर्मिया किस्मत का खेल है
मैं रूह में शामिल हूँ तुझसे जुदा नहीँ ।
बीमार ए दिल हुआ है तेरी तलाश में
अब मौत मुकर्रर है लगती दवा नहीँ ।
हर हाल में करना मुझसे निबाह साहेब
ये इश्क़ रूह का है कोई खता नहीँ।
जाने क्या कशिश है दीवानगी में तेरी
लाखों थे गुल पे भंवरे किसी को चुना नहीँ ।
जिस दर पे झुका सर तेरी ही ख़ुशी माँगी
इन लबों पर और अब कोई दुआ नहीँ ।
एक बार रूठ जाओ हक़ ये तुम्हारा है
मेंरे लिए बनी क्या कोई सजा नहीँ ।
साहब मोहब्बत में रुसवाइयाँ कबूल सब
मुझको तुम्हारे प्यार से कोई गिला नहीँ ।
अंदर से कोई
अंदर से कोई और ही हैं हम साहब
और बाहर से ” मजबूर “|
तेरी मज़बूरी भी
तेरी मज़बूरी भी होंगी,
चलो मान लेते है..
पर तेरा वादा भी था मुझे याद रखने का..
मुस्कुरा जाता हूँ
मुस्कुरा जाता हूँ अक्सर गुस्से में भी तेरा नाम सुन कर,
तेरे नाम से इतनी मोहब्बत है तो सोच तुझसे कितनी होगी..
दिल टूटने पे
दिल टूटने पे वही शख्स सबसे ज्यादा रोता है,
जिसकी मोहबत अक्सर सच्ची होती है|
उदास दिल है
उदास दिल है मगर मिलता हूँ हर एक से हंस कर,
यही एक फन सीखा है बहुत कुछ खो देने के बाद|
क्यों घबराता है
क्यों घबराता है पगले दुःख होने से ,
जीवन तो शुरू ही हुआ है रोने से|
आँखों से शुरु होकर
आँखों से शुरु होकर आँखों मे मर गई,
मेरे ख्वाबों की उम्र बस इतनी सी रही|
मोहब्बत ही ऐसा खेल है
सिर्फ मोहब्बत ही ऐसा खेल है..
जो सीख जाता है
वही हार जाता है।