वो अनजान चला है, जन्नत को पाऩे के खातिर,
बेखबर को इत्तला कर दो कि माँ-बाप घर पर ही है|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
वो अनजान चला है, जन्नत को पाऩे के खातिर,
बेखबर को इत्तला कर दो कि माँ-बाप घर पर ही है|
मैं मतलब का मतलब भी नही जानता…
वो मतलब से मतलब रखती है…
कुछ लुत्फ़ आ रहा है– मुझे दर्दे–इश्क में,
जो गम दिया है तूने वो राहत से कम नहीं|
मौसम देख रही हो,
ये चाहता है के फिरसे तुमसे इश्क हो ….
तेरी सादगी ही कत्ल करती है मेरा ,
क्या होगा जब सँवर के आएगी तू !
मैं तन्हाई को तन्हाई में तन्हा कैसे छोड़ दूँ.
इस तन्हाई ने तन्हाई में तन्हा मेरा साथ दिया था |
ये दुनिया अक्सर सस्ते में उन्हें लूट लेती है;
खुद की क़ीमत का जिन्हें अन्दाज़ा नहीं होता!
दिल का हर घाव भरने लगता है
तेरी आवाज़ है कि मरहम है|
नींद तो अब भी बहुत आती है मगर…
समझा बुझा के मुझे उठा देती हैं ज़िम्मेदारियां…!
हज़ार बार माँगा करो तो क्या हांसिल ,
दुआ वहीं है जो दिल से कभी निकलती हैं|