मत रहो दूर

मत रहो दूर हमसे इतना के अपने फैसले पर अफसोस हो जाये…

कल को शायद ऐसी मुलाकात हो हमारी…

के आप हमसे लिपटकर रोये और हम ख़ामोश हो जाये..!

वो दर्द ही क्या

वो दर्द ही क्या जो आँखों से बह जाए!
वो खुशी ही क्या जो होठों पर रह जाए!
कभी तो समझो मेरी खामोशी को!
वो बात ही क्या जो लफ्ज़ आसानी से कह जायें!

छू जाते हो

छू जाते हो तुम मुझे कितने दफ़े, ख़्वाब बनकर…

लोग खामखाँ ही कहते है कि तुम मेरे पास नहीं…!!

कुछ नहीं है

कुछ नहीं है आज मेरे शब्दों के गुलदस्ते में,
कभी कभी मेरी खामोशियाँ भी पढ लिया करो…!!