आशिक था जो

आशिक
था जो मेरे अन्दर वो कई साल पहले मर गया…!अब
तो एक शायर है,
जो बहकी बहकी बाते करता है..!!

बहुत दिन हुए

बहुत दिन हुए तुमने, बदली नहीं तस्वीर अपनी!

मैंने तो सुना था, चाँद रोज़ बदलता हैं चेहरा अपना!!

जो दिल की गिरफ्त में

जो दिल की गिरफ्त में हो जाता है,
मासूक के रहमों-करम पर हो जाता है,
किसी और की बात रास नहीं आती,
दिल कुछ ऐसा कम्बख्त हो जाता है,
मानता है बस दलीले उनकी,
ये कुछ यूँ बद हवास हो जाता है,
यार के दीदार में ऐसा मशगूल रहता है,
कि अपनी खैरियत भूल कर भी सो जाता है,
खुदा की नमाज भी भूल कर बैठा है,
कुछ इस कदर बद्सलूक हो जाता है,
जब दिल की गिरफ्त मे हो कोई,
जाने क्या से क्या हो जाता है…

छलका तो था

छलका तो था कुछ इन आँखों से उस रोज़..!!

कुछ प्यार के कतऱे थे..कुछ दर्द़ के लम्हें थे….!!!!