गुज़री तमाम उम्र उसी शहर में जहाँ…
वाक़िफ़ सभी थे कोई पहचानता न था..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
गुज़री तमाम उम्र उसी शहर में जहाँ…
वाक़िफ़ सभी थे कोई पहचानता न था..
रोयेगा वही जिसने महसुस किया है सच्चे प्यार को,
मतलब की चाहत रखने वालो को कोई फर्क नहीं पड़ता |
भरोसा खुद पर रखो तो ताकत बन जाता है…!!! और दूसरों पर रखो तो कमजोरी बन जाता है…!!!
ना किस्सों से और ना किश्तों से..
ये ज़िन्दगी बनती है कुछ रिश्तों से…
जरा अपना ध्यान रखना दोस्तो….,
सुना है इश़्क इसी मौसम में शिकार करता है|
चलते चलते थक कर पूँछा पाँव के ज़ख़्मी छालों ने….
बस्ती कितनी दूर बना ली दिल में बसने वालों ने….
अगर दिल टूटे तो मेरे पास चले आना !
मुझे बिखरे हुये लोगो से मोहब्बत बहुत है ….
कल रात मैंने अपने सारे ग़म,
कमरे की दीवार पर लिख डाले,
बस फिर हम सोते रहे और दीवारे रोती रही.
तकिये के लिहाफ में छुपाकर रखी हैं तेरी यादें,
जब भी तेरी याद आती है मुँह छुपा लेता हूँ
उम्र भर ख़्वाबों की मंज़िल का सफ़र जारी रहा,
ज़िंदगी भर तजरबों के ज़ख़्म काम आते रहे…