वाह रे जमाने तेरी हद हो गई, बीवी के
आगे माँ रद्द हो गई !
बड़ी मेहनत से जिसने पाला, आज
वो मोहताज हो गई !
और कल की छोकरी, तेरी सरताज हो गई !
बीवी हमदर्द और माँ सरदर्द हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई.!!
पेट पर सुलाने वाली, पैरों में सो रही !
बीवी के लिए लिम्का,
माँ पानी को रो रही !
सुनता नहीं कोई, वो आवाज देते सो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई.!!
माँ मॉजती बर्तन, वो सजती संवरती है !
अभी निपटी ना बुढ़िया तू , उस पर बरसती है !
अरे दुनिया को आई मौत,
तेरी कहाँ गुम हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई .!!
अरे जिसकी कोख में पला, अब
उसकी छाया बुरी लगती,
बैठ होण्डा पे महबूबा, कन्धे पर हाथ
जो रखती,
वो यादें अतीत की, वो मोहब्बतें माँ की, सब रद्द
हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई .!!
बेबस हुई माँ अब, दिए टुकड़ो पर पलती है,
अतीत को याद कर, तेरा प्यार पाने को मचलती है !
अरे मुसीबत जिसने उठाई, वो खुद मुसीबत
हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई .!!
Category: प्यार शायरी
प्रेम से देती है
प्रेम से देती है, वह है “बहन”
झगङकर देता है, वह है “भाई”
पुछकर देता है, वह है “पिताजी”
और बिना माँगे सबकुछ दे देती है
वह है…”माँ'”
खुद मुझे लिखा है
“माँ ” के लिए क्या लिखू ?
“माँ ” ने खुद मुझे लिखा है ..
आखों में आंसू
एक बुढा व्यक्ति अपना मोबाईल लेकर रिपेयरिंग की दुकान पर गया और दिखाया.
रिपेयरिंग वाले ने कहा: यह बिलकुल ठीक काम कर रहा है
वृद्ध की आखों में आंसू आ गये बोला : फिर इसमें मेरे बच्चो के फोन क्यों नही आते?
ऊपर जिसका अंत
ऊपर जिसका अंत नही उसे आंसमा कहते हैं और इस जंहा मे जिसका अंत नही उसे मां कहते हैं
जब आंख खुली
जब आंख खुली तो अम्मा की
गोदी का एक सहारा था
उसका नन्हा सा आंचल मुझको
भूमण्डल से प्यारा था
उसके चेहरे की झलक देख
चेहरा फूलों सा खिलता था
उसके स्तन की एक बूंद से
मुझको जीवन मिलता था
हाथों से बालों को नोंचा
पैरों से खूब प्रहार किया
फिर भी उस मां ने पुचकारा
हमको जी भर के प्यार किया
मैं उसका राजा बेटा था
वो आंख का तारा कहती थी
मैं बनूं बुढापे में उसका
बस एक सहारा कहती थी
उंगली को पकड. चलाया था
पढने विद्यालय भेजा था
मेरी नादानी को भी निज
अन्तर में सदा सहेजा था
मेरे सारे प्रश्नों का वो
फौरन जवाब बन जाती थी
मेरी राहों के कांटे चुन
वो खुद गुलाब बन जाती थी
मैं बडा हुआ तो कॉलेज से
इक रोग प्यार का ले आया
जिस दिल में मां की मूरत थी
वो रामकली को दे आया
शादी की पति से बाप बना
अपने रिश्तों में झूल गया
अब करवाचौथ मनाता हूं
मां की ममता को भूल गया
हम भूल गये उसकी ममता
मेरे जीवन की थाती थी
हम भूल गये अपना जीवन
वो अमृत वाली छाती थी
हम भूल गये वो खुद भूखी
रह करके हमें खिलाती थी
हमको सूखा बिस्तर देकर
खुद गीले में सो जाती थी
हम भूल गये उसने ही
होठों को भाषा सिखलायी थी
मेरी नीदों के लिए रात भर
उसने लोरी गायी थी
हम भूल गये हर गलती पर
उसने डांटा समझाया था
बच जाउं बुरी नजर से
काला टीका सदा लगाया था
हम बडे हुए तो ममता वाले
सारे बन्धन तोड. आए
बंगले में कुत्ते पाल लिए
मां को वृद्धाश्रम छोड आए
उसके सपनों का महल गिरा कर
कंकर-कंकर बीन लिए
खुदग़र्जी में उसके सुहाग के
आभूषण तक छीन लिए
हम मां को घर के बंटवारे की
अभिलाषा तक ले आए
उसको पावन मंदिर से
गाली की भाषा तक ले आए
मां की ममता को देख मौत भी
आगे से हट जाती है
गर मां अपमानित होती
धरती की छाती फट जाती है
घर को पूरा जीवन देकर
बेचारी मां क्या पाती है
रूखा सूखा खा लेती है
पानी पीकर सो जाती है
जो मां जैसी देवी घर के
मंदिर में नहीं रख सकते हैं
वो लाखों पुण्य भले कर लें
इंसान नहीं बन सकते हैं
मां जिसको भी जल दे दे
वो पौधा संदल बन जाता है
मां के चरणों को छूकर पानी
गंगाजल बन जाता है
मां के आंचल ने युगों-युगों से
भगवानों को पाला है
मां के चरणों में जन्नत है
गिरिजाघर और शिवाला है
हिमगिरि जैसी उंचाई है
सागर जैसी गहराई है
दुनियां में जितनी खुशबू है
मां के आंचल से आई है
मां कबिरा की साखी जैसी
मां तुलसी की चौपाई है
मीराबाई की पदावली
खुसरो की अमर रूबाई है
मां आंगन की तुलसी जैसी
पावन बरगद की छाया है
मां वेद ऋचाओं की गरिमा
मां महाकाव्य की काया है
मां मानसरोवर ममता का
मां गोमुख की उंचाई है
मां परिवारों का संगम है
मां रिश्तों की गहराई है
मां हरी दूब है धरती की
मां केसर वाली क्यारी है
मां की उपमा केवल मां है
मां हर घर की फुलवारी है
सातों सुर नर्तन करते जब
कोई मां लोरी गाती है
मां जिस रोटी को छू लेती है
वो प्रसाद बन जाती है
मां हंसती है तो धरती का
ज़र्रा-ज़र्रा मुस्काता है
देखो तो दूर क्षितिज अंबर
धरती को शीश झुकाता है
माना मेरे घर की दीवारों में
चन्दा सी मूरत है
पर मेरे मन के मंदिर में
बस केवल मां की मूरत है
मां सरस्वती लक्ष्मी दुर्गा
अनुसूया मरियम सीता है
मां पावनता में रामचरित
मानस है भगवत गीता है
अम्मा तेरी हर बात मुझे
वरदान से बढकर लगती है
हे मां तेरी सूरत मुझको
भगवान से बढकर लगती है
सारे तीरथ के पुण्य जहां
मैं उन चरणों में लेटा हूं
जिनके कोई सन्तान नहीं
मैं उन मांओं का बेटा हूं
हर घर में मां की पूजा हो
ऐसा संकल्प उठाता हूं
मैं दुनियां की हर मां के
चरणों में ये शीश झुकाता हूं.l
दिल की क्या औकात
जब हम तुझ पे कुरबान हैं
तो दिल की क्या औकात
दुख जमा कर सकते है।
“माँ” एक ऐसी ‘बैंक’ है जहाँ आप हर भावना और दुख जमा कर सकते है।
और
“पापा” एक ऐसा ‘क्रेडिट कार्ड’ है जिनके पास बैलेंस न होते हुए भी हमारे सपने पूरे करने की कोशिश करते है॥
जिंदगी बेवफा सी
पास रहकर, जुदा सी लगती है ,जिंदगी बेवफा सी लगती है..!!!
मै तुम्हारे बगैर भी जी लूँ , ये दुआ बद दुआ, सी लगती है .!!!
नाम उसका लिखा है आँखों में,आसुओं की ख़ता सी लगती है.!!!
वो भी इस तरफ से गुज़रा है, ये ज़मी आसमां सी लगती है .!!!
प्यार करना भी जुर्म है शायद आज, दुनिया खफ़ा सी लगती है .!!!
पास रहकर जुदा सी लगती है ,जिंदगी बेवफा सी लगती है ..!!!
सस्ता न समझ
सस्ता न समझ ये इश्क़ का सौदा पगली,
तेरी हँसी के बदले पूरी जिंदगी दे रहा हूँ…….