रूकता नहीं तमाशा, रहता है खेल जारी…
उस पर कमाल ये है, कि दिखता नहीं मदारी…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
रूकता नहीं तमाशा, रहता है खेल जारी…
उस पर कमाल ये है, कि दिखता नहीं मदारी…
क़लम नुकीली बहुत है हमारी
डरते है कभी किसी के कलेजे पर न चल जाये|
तन्हाई की दीवारो पे घुटन का पर्दा झूल रहा है
बेबसी की छत के नीचे कोई किसी को भूल रहा है|
गिला बनता ही नही बेरुखी का
इंसान ही तो था बदल गया होगा|
हम अपने रिश्तो के लिए वक़्त नहीं निकाल सके
फिर वक़्त ने हमारे बीच से रिश्ता ही निकाल दिया|
घर की इस बार मुकम्मल मै तलाशी लूँगा
ग़म छुपा कर मेरे माँ बाप कहाँ रखते है|
तेरे हुस्न से कितना मुख़्तलिफ़ तेरी ज़ात का पहलू
इतने नर्म होंठो से कितना सख़्त बोलते हो तुम|
कभी टूटा नहीं मेरे दिल से तेरी यादों का सिलसिला,
गुफ्तगू जिससे भी हुई पर खयाल तेरा ही रहा…!!
मतलबी दुनिया के लोग खड़े है,हाथों में पत्थर लेकर ,.,
मैं कहाँ तक भागूं ,शीशे का मुकद्दर लेकर..
जिंदगी मे बस इतना कमाओ की.. जम़ीन पर बैठो तो.. लोग उसे आपका बडप्पन कहें.. औकात नहीं…..