अखबार के साथ दबे पांव चली आती थीं,
टीवी ने खबरों को
शोर मचाना सिखा दिया..!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
अखबार के साथ दबे पांव चली आती थीं,
टीवी ने खबरों को
शोर मचाना सिखा दिया..!!
जिंदगी तो अपने ही तरीके से चलती है….
औरों के सहारे तो जनाज़े उठा करते हैं।
सुबहे होती है , शाम होती है
उम्र यू ही तमाम होती है ।
कोई रो कर दिल बहलाता है
और
कोई हँस कर दर्द छुपाता है.
क्या करामात है कुदरत की,
ज़िंदा इंसान पानी में डूब जाता है
और मुर्दा तैर के दिखाता है…
जरा सी बात देर तक रुलाती रही, खुशी में भी आँखे आँसू बहाती रही, कोइ मिल के खो गया तो कोइ खो के मिल गया, जिन्दगी हमको बस ऐसे ही आजमाती रही|
वो चूड़ी वाले को, अपनी कलाई थमा
देती है. . .
जिनकी आज तक हम उंगलियाँ न
छू सके. .
आपकी गर्दन पर लिपटी
आपके बच्चों की बाहों से कीमती,
जेवर आप कभी नहीं पा सकते..!!!
हर शख्स अपने गम में खोया है…..!!!
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और जिसे गम नहीं, वो कब्र में सोया है…….!!
तरस खाओ तो बस इतना बताओ….
“हमदम”
वफ़ा नहीं आती या तुम से की नहीं जाती……..
जो आपके इंतज़ार में गुज़रती है,बहुत मसरुफ़ होने पर भी वो फ़ुरसत कम नही होती……
हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए
कभी तो हौसला कर के नहीं कहा जाए
तुम्हारा घर भी इसी शहर के हिसार में है
लगी है
आग कहाँ क्यूँ पता किया जाए
जुदा है हीर से राँझा कई ज़मानों से
नए सिरे से कहानी को फिर लिखा जाए
कहा गया है सितारों को छूना मुश्किल है
कितना सच है कभी तजरबा किया जाए
किताबें
यूँ तो बहुत सी हैं मेरे बारे में
कभी अकेले में ख़ुद को भी पढ़ लिया जाए
हमने कब कहा कीमत समझो तुम मेरी…
,
हमें बिकना ही होता तो यूँ तन्हा ना होते….
……
……….