तुम रात सी…मैं भोर सा…
तुम मंजिल मेरी…मैं इंतजार सा…
Category: गुस्ताखियां शायरी
मोहताज नही होते
मुलाक़ातें तो आज भी हो जाती है तुमसे,.क्योकी ख़्वाब किसी ताले के मोहताज नही होते
जाने ये कैसा ज़हर
जाने ये कैसा ज़हर दिलों में उतर गया।।
परछाईं ज़िंदा रह गई इंसान मर गया।
छोटी सी कहानी
मैं कोई छोटी सी कहानी नहीं थी , पन्ने को जल्दी पलट गए हो तुम…..
उससे बिछड़े तो
उससे बिछड़े तो मालूम हुआ की मौत भी कोई चीज़ है ‘फ़राज़’ ज़िन्दगी वो थी जो हम उसकी महफ़िल में गुज़ार आए !!
वहम से भी
वहम से भी अक्सर खत्म हो जाते हैं कुछ रिश्ते,
कसूर हर बार गल्तियों का नही होता
फिर उड़ गयी नींद
फिर उड़ गयी नींद ये सोच कर सरहद पर वो बहा खून मेरी नींद के लिए था…
उन आँखों की
उन आँखों की दो बूंदों से समन्दर भी हारे होंगे…
जब मेहँदी वाले हाथो ने मंगलसूत्र उतारे होंगे.शहादत को नमन…
ज़िन्दिगी बन जाती हैं
दो परिंदे सोंच समझ कर जुदा हो गयें और जुदा होकर मर
गयें जानते हो क्यों? क्योंकि उन्हे नहीं मालूम था
कि नज़दीकियाँ पहले आदत फिर ज़रूरत और फिर
ज़िन्दिगी बन जाती हैं|
हमेँ देख कर उसने
हमेँ देख कर उसने,मुह मोड लिया……
,
तसल्ली सी हो गयी,,कि चलो,पहचानती तो
है