सियाही फैल गयी पहले, फिर लफ्ज़ गले, और एक एक कर के डूब गए..
Category: Zindagi Shayri
ये भी क्या सवाल हुआ
ये भी क्या सवाल हुआ कि इश्क़ कितना चाहिए, . दिल तो बच्चे की तरह है मुझे थोड़ा नहीं सब चाहिए !!
तेरे हर ग़म को
तेरे हर ग़म को अपनी रूह में उतार लूँ; ज़िन्दगी अपनी तेरी चाहत में संवार लूँ; मुलाक़ात हो तुझसे कुछ इस तरह मेरी; सारी उम्र बस एक मुलाक़ात में गुज़ार लूँ।
कितनी अजीब जगह है
दुनिया भी कितनी अजीब जगह है; जब चलना नही आता था, तब कोई गिरने नही देता था; और जबसे चलना सिखा है, कदम कदम पर लोग गिराना चाहते है!
जीने की कुछ
जीनेकी कुछ तो वजह होनी चाहिए…..वादे ना सही.. यादे तो होनी चाहिए…….!!
आ थक के कभी
आ थक के कभी और, पास मेरे बैठ तू हमदम . . . तू खुद को मुसाफ़िर, मुझे दीवार समझ ले ।
मत दिखाओ हमें
मत दिखाओ हमें, तुम ये मुहब्बत का बहीखाता , हिसाब-ए-इश्क़ रखना, हम दीवानों को नहीं आता ….
कितनी है कातिल ज़िंदगी
कितनी है कातिल ज़िंदगी की ये आरज़ू, मर जाते हैं किसी पे लोग जीने के लिये।
कीसीने युं ही
कीसीने युंही पुछ लिया की दर्दकी किमत क्या है? हमने हंसते हुए कहा, पता कुछ अपने मुफ्त में दे जाते है।
अक्ल बारीक हुई
अक्ल बारीक हुई जाती है, रूह तारीक हुई जाती है।