वह कितना मेहरबान था, कि हज़ारों गम दे गया…
हम कितने खुदगर्ज़ निकले, कुछ ना दे सके उसे प्यार के सिवा।
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
वह कितना मेहरबान था, कि हज़ारों गम दे गया…
हम कितने खुदगर्ज़ निकले, कुछ ना दे सके उसे प्यार के सिवा।
मेरी ख्वाइश थी कि मुझे तुम ही मिलते, मगर मेरी ख्वाइशों की इतनी औकात कहाँ…..
आजकल आम भी खुद ही
गिर जाया करते है पेड़ो से,
क्योंकि उन्हें छिप छिप कर
तोड़ने वाला बचपन जो नहीं रहा !!!
बड़ी अारजू थी महबूब को बे नक़ाब देखने की
दुपट्टा जो सरका तो ज़ुल्फ़ें दीवार बन गयी
दिल करता है फुर्सत की नुक्कड़ पर बैठ कर,
दो लम्हो के बीच में , कॉमा, लगाया जाये…!
जो ऊसूलों से लड़ पड़ी होगी वो जरुरत बहुत बड़ी होगी,
एक भूखे ने कर ली मंदिर में चोरी शायद भुख भगवान से बडी होगी….
चल रहे है देश में पुरस्कार लौटाने के सिलसिले,?
उनसे भी कोई कह दे ☺ज़रा हमारा दिल लौटा दे..??❤
दो दिलो की मोहब्बत से जलते हैं लोग;
तरह-तरह की बातें तो करते हैं लोग;
जब चाँद और सूरज का होता है खुलकर मिलन;
तो उसे भी “सूर्य ग्रहण” तक कहते हैं लोग!
काज़ियो से नहीं पढवाया जाता कलमा इश्क का..
पढ़े नज़र-ऐ-यार जो, फिर होता नहीं किसी का..!
पेशानियों पे लिखे मुक़द्दर नहीं मिले
दस्तार कहाँ मिलेंगे जहाँ सर नहीं मिले