जहर …
मरने के लिए थोडा सा.. !
लेकिन
जिंदा रहने के लिए ……. बहुत
सारा पीना पड़ता है
Category: Zindagi Shayri
रात रोने से
रात रोने से कब घटी साहब
बर्फ़ धागे से कब कटी साहब
सिर्फ़ शायर वही हुए जिनकी
ज़िंदगी से नहीं पटी साहब..
एहतियातन मेरी हिम्मत
इसे
सामान-ए-सफ़र मान, ये जुगनू रख ले,
राह में तीरगी होगी, मेरे
आंसू रख ले,
तू जो चाहे तो तेरा झूठ भी बिक सकता है,
शर्त इतनी
है के सोने का तराजू रख ले,
वो कोई जिस्म नही है जिसे छु भी
सके,
अगर नाम ही रखना है तो खुशबु रख ले,
तुझको अनदेखी
बुलंदी में सफ़र करना है,
एहतियातन मेरी हिम्मत, मेरे बाज़ू रख ले,
मेरी ख्वाइश है के आँगन में दीवार न उठे,
मेरे भाई मेरे हिस्से की
ज़मी तू रख ले….
हिसाब रहता है
फिर
कहाँ का हिसाब रहता है ,.,
इश्क़ जब बेहिसाब हो जाये ,.,!!
तूने पलट के देख
यही
बहुत है तूने पलट के देख लिया,
ये लुत्फ़ भी मेरे अरमान से ज्यादा है.
वजह ना पूछो तो
अगर
तुम वजह ना पूछो तो एक बात कहूँ!!!
बिना याद किये तुम्हें अब
रहा नहीं जाता है
कब इंसाफ़ करोगे
मुंसिफ़
हो अगर तुम तो कब इंसाफ़ करोगे मुजरिम हैं अगर हम तो सज़ा
क्यूँ नहीं देते
हंसना भी आसान
रोने में
इक ख़तरा है, तालाब नदी हो जाते हैं
हंसना भी आसान नहीं है, लब
ज़ख़्मी हो जाते हैं
ऐसा भी कायदा हो
मुकद्दर
की लिखावट का
इक ऐसा भी कायदा हो…
देर से किस्मत खुलने
वालों का
दोगुना फायदा हो……
चादर की ज़रूरत
मुफलिस
के बदन को भी है चादर की ज़रूरत,
अब खुल के मज़ारों पर ये
ऐलान किया जाए..
क़तील शिफ़ाई