ढल गया आफ़ताब

ढल गया आफ़ताब ऐ साक़ी
ला पिला दे शराब ऐ साक़ी
या सुराही लगा मेरे मुँह से
या उलट दे नक़ाब ऐ साक़ी

मैकदा छोड़ कर कहाँ जाएँ
है ज़माना ख़राब ऐ साक़ी

जाम भर दे गुनाहगारों के
ये भी है इक सवाब ऐ साक़ी
आज पीने दे और पीने दे
कल करेंगे हिसाब ऐ साक़ी

एक रविवार ही है

एक रविवार ही है जो रिश्तों को संभालता है
वरना बाकि

दिन तो किश्तों को सँभालने में लग जाते है !!

तुलसी ये तन

तुलसी ये तन

खेत हैं,
मन वचन कर्म किसान |
पुण्य पाप ये दो बीज हैं,
क्या बोना हैं

ये तू जान ||

ए मौसम तू

ए मौसम तू चाहे कितना भी बदल जा

पर,
इंसान के जैसे बदलने का हुनर तुझे कभी नही आएगा…॥