बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले…..
ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता…!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले…..
ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता…!!
घर से निकले थे हौसला करके लौट आए ख़ुदा-ख़ुदा करके ज़िंदगी तो कभी नहीं आई मौत आई ज़रा-ज़रा करके…!!
इस शहर के अंदाज अजब देखे है यारों !
गुंगो से कहा जाता है, बहरों को पुकारो !!
उसे ज़ली हुई लाशें नज़र नही आती
मग़र वह सुई से धागा गुज़ार देता है
तुझको बेहतर बनाने की कोशिश में,तुझे वक़्त ही नहीं दे पा रहे हम,माफ़ करना ऐ ज़िंदगी, तुझे जी नहीं पा रहे हम…..
ज़ख्म इतने गहरे हैं इज़हार क्या करें; हम खुद निशान बन गए वार क्या करें; मर गए हम मगर खुलो रही आँखें; अब इससे ज्यादा इंतज़ार क्या करें!
मीठी यादों के साथ गिर रहा था,
पता नहीं क्यों फिर भी मेरा वह आँसु खारा था…
यू तो फूल बहूत थे बागो मे
पर
हमे पंसद वो था जो सब से अकेला था..!!!!
कोई पटवारी वाकिफ़ है क्या तुम्हारा,
अपनी ज़िन्दगी तुम्हारे नाम करवानी थी
मैं तो मोम था इक आंच में पिघल जाता…
तेरा सुलूक़ मुझे पत्थरों में ढाल गया….