मुझको ढूंढ लेता है रोज़ नये बहाने से…….
दर्द हो गया है वाक़िफ़ मेरे हर ठिकाने से..!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मुझको ढूंढ लेता है रोज़ नये बहाने से…….
दर्द हो गया है वाक़िफ़ मेरे हर ठिकाने से..!!
हर जगह हर शहर हर मका में
धूम है उस की मौजूदगी गी मौजूद है|
मोहब्बत का असर कुछ इस तरह जिन्दा कर देता हूँ मैं मीत,
…बेवफाओं को भी गले लगाकर शर्मिंदा कर देता हूँ !!
दर्द अब इतना की संभलता नही है
तेरा दिल मेरे दिल से मिलता नही है
अब और किस तरह पुकारूँ मैं तुम्हे
तेरा दिल तो मेरे दिल की सुनता भी नही है |
यही इश्क है शायद…
नज़दीक नहीं तुम मेरे….
पर मैं तुमसे… दूर नहीं…
शब्द मेरी पहचान बने तो ठीक है
वर्ना चेहरे का क्या वो तो मेरे साथ चला जायेगा|
हम तो पहले से बिगडे हुऐ है,
हमारा कोई क्या बिगाड लेगा..
अलविदा कहते हुए जब उनसे कोई निशानी मांगी
वो मुस्कुराते हुए बोले की जुदाई काफी नहीं है क्या..
भूल कर अपना ज़माना ये ज़माने वाले
आज के प्यार को मायूब समझते होंगे !
आसाँ कहाँ था कारोबार-ए-इश्क
पर कहिये हुजूर , हमने कब शिकायत की है ?
हम तो मीर-ओ-गालिब के मुरीद हैं
हमेशा आग के दरिया से गुजरने की हिमायत की है !