क़रार दिल को सदा जिस के नाम से आया
वो आया भी तो किसी और काम से आया|
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हम वहाँ हैं
हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती
कभी फुरसत मे
कभी फुरसत मे अपनी कमियो पर गाैर करना …
दुसरो के आईने बनने की ख्वाहिश मिट जायेगी…
दिलो की गुफ्तगू
दिलो की गुफ्तगू देखो,…!!
चलती कलम है
नशा पैमाने का है
और
मदहोशी तुम|
कभी मैं अपने हाथों की
कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा
मुझे मालूम है क़िस्मत का लिक्खा भी बदलता है
सबूतों और गवाहों
सबूतों और गवाहों की साहब… यहाँ सेल नहीं होती,
आपने जुर्म-ए-मोहब्बत किया है, इसमें बेल नहीं होती।
सूरज रोज़ अब भी
सूरज रोज़ अब भी बेफ़िज़ूल ही निकलता है ।
तुम गये जब से उजाला नहीं हुआ….
बेजुबान पत्थर पे
बेजुबान पत्थर पे लदे है करोंडो के गहने मंदिरो में ।उसी दहलीज पर एक रूपये को तरसते नन्हें हाथों को देखा है।
जीने का ज्यादा तजुर्बा
मुझे ज़िन्दगी जीने का ज्यादा तजुर्बा तो नहीं हैं
पर सुना है लोग सादगी से जीने नहीं देते|
तज़ुर्बा मेरा लिखने का
तज़ुर्बा मेरा लिखने का बस इतना सा है
मैं सुनता हूँ वाह वाह अपनी ही तबाही पर |