मत दिखाओ हमें, तुम ये मुहब्बत का बहीखाता ,
हिसाब-ए-इश्क़ रखना, हम दीवानों को नहीं आता …
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कितनी है कातिल ज़िंदगी
कितनी है कातिल ज़िंदगी की ये आरज़ू,
मर जाते हैं किसी पे लोग जीने के लिये।
कीसीने युंही पुछ लिया
कीसीने युंही पुछ लिया की दर्दकी किमत क्या है?
हमने हंसते हुए कहा, पता कुछ अपने मुफ्त में दे जाते है।
अक्ल बारीक हुई
अक्ल बारीक हुई जाती है,
रूह तारीक हुई जाती है।
फासले इस कदर
फासले इस कदर आज है रिश्तों में,
जैसे कोई क़र्ज़ चुका रहा हो किश्तों में
एक ही चौखट पे
एक ही चौखट पे सर झुके तो सुकून मिलता है
भटक जाते है वो लोग जिनके हजारों खुदा होते है।
हमारे बिन अधूरे तुम
हमारे बिन अधूरे तुम रहोगे,
कभी चाहा था किसी ने,तुम ये खुद कहोगे..
सियाही फैल गयी
सियाही फैल गयी पहले, फिर लफ्ज़ गले,
और एक एक कर के डूब गए..
ये भी क्या सवाल हुआ
ये भी क्या सवाल हुआ कि इश्क़ कितना चाहिए,
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दिल तो बच्चे की तरह है मुझे थोड़ा नहीं सब चाहिए !!
तेरे हर ग़म को
तेरे हर ग़म को अपनी रूह में उतार लूँ;
ज़िन्दगी अपनी तेरी चाहत में संवार लूँ;
मुलाक़ात हो तुझसे कुछ इस तरह मेरी;
सारी उम्र बस एक मुलाक़ात में गुज़ार लूँ।