बड़ी अारजू थी महबूब को बे नक़ाब देखने की
दुपट्टा जो सरका तो ज़ुल्फ़ें दीवार बन गयी
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
बड़ी अारजू थी महबूब को बे नक़ाब देखने की
दुपट्टा जो सरका तो ज़ुल्फ़ें दीवार बन गयी
दिल करता है फुर्सत की नुक्कड़ पर बैठ कर,
दो लम्हो के बीच में , कॉमा, लगाया जाये…!
जो ऊसूलों से लड़ पड़ी होगी वो जरुरत बहुत बड़ी होगी,
एक भूखे ने कर ली मंदिर में चोरी शायद भुख भगवान से बडी होगी….
चल रहे है देश में पुरस्कार लौटाने के सिलसिले,?
उनसे भी कोई कह दे ☺ज़रा हमारा दिल लौटा दे..??❤
दो दिलो की मोहब्बत से जलते हैं लोग;
तरह-तरह की बातें तो करते हैं लोग;
जब चाँद और सूरज का होता है खुलकर मिलन;
तो उसे भी “सूर्य ग्रहण” तक कहते हैं लोग!
काज़ियो से नहीं पढवाया जाता कलमा इश्क का..
पढ़े नज़र-ऐ-यार जो, फिर होता नहीं किसी का..!
चुप्पियां जिस दिन खबर हो जायेगी,
कई हस्तियां दर – ब – दर हो जायेगी
जीभ में हड्डिया नहीं होती
फिर भी
जीभ हड्डियां तुड़वाने की
“ताक़त” रखती हैं..!!
किसी को कुछ देने की इच्छा हो तो आत्म-विश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन सर्वोत्तम उपहार के रूप में दे|
उंगलिया आज भी इस सोच में गुम है , उसने कैसे नए हाथ को थामा होगा.