रात की झील में गोते लगाने चल दिए थे
तुम थी,
मैं था,
और एक जगमगाती कश्ती थी !
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
रात की झील में गोते लगाने चल दिए थे
तुम थी,
मैं था,
और एक जगमगाती कश्ती थी !
नफरत करोगे तो अधुरा किस्सा हूँ मैं..
मुहोब्बत करोगे तो तुम्हारा ही हिस्सा हूँ मैं..
आज अपनी फालतू चीजें बेच रहा हूँ मैं,
है कोई ऐसा जिसे मेरी शराफत चाहिए !!
बन के तुम मेरे मुझको मुक्कमल करदो,
…
अधूरे अधूरे तो अब, हम खुद को भी अच्छे नही लगते ।
बदल गया है जमाना, पहले मां के पैर छूकर घर से निकलते थे…
और अब मोबाईल फोन की
बैटरी फुल करके….
ग़रीब समझकर आज उसने उठा दिया हमें अपनी महफ़िल से ?
.
कोई मेरी ख़ातिर पूछे उनसे, क्या चाँद की महफ़िल में सितारे
नहीं होते ??
किसी गरीब को मत सताना। वो तो बस रो देगा पर…
उपरवाले ने सुन लिया तो तू अपनी हस्ती खो देंगा..
बस दुआएँ बटोरनें आया हूँ, माँ ने कहा,
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दौलत तो साथ जाती नहीं”..
आखिर थक हार के, लौट आया मैं बाजार-ए – दुनिया से
.
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कि यादों को बंद करने के ताले, कहीं भी नहीं मिले___!!
KYA KHUB LIKHA HAI KISINE……..
”Aye Jindagi Kash Tu Hi Ruth Jati Mujhse…….
.
Kyoki…….
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Ye Ruthe Hue Log Ab Mujhse Manaye Nahi
Jaate……….