खुशी के आंसू रूकने न देना,
गम के आंसू बहने न देना,
ये जिंदगी न जाने कब रूक जाए,
मगर ये प्यारी सी दोस्ती कभी टूटने न देना।
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मिटटी में मिल जायेगी..
ना जीत पे अपनी दम्भ करो ना हार पे मेरी तंज़ कसो ,
जो धूल हवा से उड़ी है फिर से मिटटी में मिल जायेगी..!!
हुए बदनाम मगर
हुए बदनाम मगर फिर भी न सुधर पाए हम…..
फिर वही शायरी, फिरवही इश्क, फिर वही तुम..फिर वही हम…..
कोई प्यासा दिखे तो
आंधियों से न बुझूं ऐसा उजाला हो जाऊँ,
वो नवाज़े तो जुगनू से सितारा हो जाऊँ,
एक क़तरा हूँ मुझे ऐसी फितरत दे भगवन’
कोई प्यासा दिखे तो दरिया हो जाऊ…!!!
जिसकी साँसे भी
उस ‘गरीब’ की
‘उम्मीदें’ क्या होंगी ..!
जिसकी ‘साँसे’ भी
‘गुब्बारों’ में बिकती हैं…
यादों की संदूक में
तेरी यादों की संदूक में …..
मैं दबा पड़ा हूँ
किसी पुराने खत की तरह !!
भगवान मेरे साथ है
जब मुझे यकीन है के भगवान मेरे साथ है
तो इस से कोई फर्क नहीं पड़ता के कौन कौन मेरे खिलाफ है।।”
तजुर्बे ने एक बात सिखाई है…
एक नया दर्द ही…
पुराने दर्द की दवाई है…!
हंसने की इच्छा ना हो…
तो भी हसना पड़ता है…
कोई जब पूछे कैसे हो…??
तो मजे में हूँ कहना पड़ता है
ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों….
यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है.
“माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती..
यहाँ आदमी आदमी से जलता है…!
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन
क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!.
एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली..
वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे..!!
सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से..
पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!
सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब….
बचपन वाला ‘इतवार’ अब नहीं आता |
जीवन की भाग-दौड़ में –
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ?
हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है..
एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम
और
आज कई बार
बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..
कितने दूर निकल गए,
रिश्तो को निभाते निभाते..
खुद को खो दिया हमने,
अपनों को पाते पाते..
लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है,
और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते..
“खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,
लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह
करता हूँ..
चाहता तो हु की ये दुनिया बदल दूं ….
पर दो वक़्त की रोटी के जुगाड़ में फुर्सत नहीं मिलती दोस्तों
किसी की गलतियों को बेनक़ाब ना कर,
‘ईश्वर’ बैठा है, तू हिसाब ना कर
वो लौट के आये
वो लौट के आये मेरी ज़िन्दगी में अपने मतलब के लिए……..
और…….
मैं यह सोचता रहा मेरी दुआओं में दम हैं
आज हालात देखकर
बचपन में एक पत्थर तबियत से ऊपर
उछाला था कभी…!
.
.
आज हालात देखकर लगता है
.
.
कहीं वो “ऊपर-वाले” को तो नहीं लग
गया…!!
वाह रे मेरी जिन्दगी
वाह रे मेरी जिन्दगी……..
तु सच मे सफर~ए~श्मशान है,
जहाँ कन्धा भी अपना और लाश भी अपनी….||