उम्मीदों के ताले पड़े के पड़े रह गए,
तिज़ोरी उम्र की, ना जाने कब ख़ाली हो गई !!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
उम्मीदों के ताले पड़े के पड़े रह गए,
तिज़ोरी उम्र की, ना जाने कब ख़ाली हो गई !!
संदेशा प्रेम का देता फिरता है वो
घर दिलों में सभी के ही बना देता है!
मुझे फुर्सत से मिलो सब तुम्हे बताऊंगा
कौन कमज़र्फ है और कौन दुआ देता है!
इतनी चाहत से न देखो भरी महफ़िल में मुझे
वो हरेक बात का अफसाना बना देता है!
मुश्किलें आयीं मगर लौट गयीं उलटे पाँव
कोई ऐसा भी है जो मुझको दुआ देता है!
अपने रिश्ते में कभी शक़ को न आने देना
ये बिना आग ही घर बार जला देता है!
सिर्फ पछतावे के कुछ हाथ नहीं है आता
वक़्त बेकार में जो अपना गँवा देता है!
फख्र इतना भी न कर दोस्त कभी सूरत पर
सेब को वक्त छुआरा भी बना देता है!
बात हुई थी समंदर के किनारे किनारे चलने की
बातों बातों में निगाहों के समंदर में डूब गयी..
उलझा के रख दिया है किसी ने जवाब को सीधा सा था सवाल….प्यार करते हो या नहीं…