ख़ुबसूरत था इस क़दर के महसूस ना
हुआ..
कैसे,कहाँ और कब मेरा बचपन चला गया….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
ख़ुबसूरत था इस क़दर के महसूस ना
हुआ..
कैसे,कहाँ और कब मेरा बचपन चला गया….
लोग चाहते हैं कि आप
बेहतर करें,
लेकिन ये भी सत्य है कि वो कभी नहीं चाहते कि आप उनसे बेहतर करें !!!”
दूनिया का उसूल है जब तक काम है तब
तक तेरा नाम है वरना दूर से ही सलाम है
लौटा देता कोई
एक दिन
नाराज़ हो कर …
काश बचपन भी मेरा
कोई अवॉर्ड होता…
ऐ उम्र कुछ कहा मैंने,
शायद तूने सुना नहीं….
तू छीन सकती है बचपन मेरा , बचपना नहीं…
जो सपने हमने बोये थे
नीम की ठंडी छाओ में,
.
कुछ पनघट पर छूट गए कुछ कागज की नाव में.
स्याही की भी मंज़िल का
अंदाज़ देखिये :
खुद-ब-खुद बिखरती है, तो दाग़ बनाती है,
जब कोई बिखेरता है, तो
अलफ़ाज़…बनाती है…!!
साफ़ दिल से
मुलाक़ात की आदत डलों यारों
क्यूँ की घुल हटती है तो अाईने भी चमक उठते है
ज़िन्दगी के हाथ नहीं
होते..
लेकिन कभी कभी वो ऐसा थप्पड़ मारती हैं जो पूरी उम्र
याद रहता हैं
उमर बीत गई पर एक
जरा सी बात समझ में
नहीं आई…!!
हो जाए जिनसे मोहब्बत,वो लोग कदर
क्युँ नहीं करते…..!
गुज़र जायेगा ये दौर भी ज़रा सा इतमिनान तो रख… जब
खुशियाँ ही नही ठहरीं तो ग़म की क्या औक़ात है..