जिंदगी पर बस

जिंदगी पर बस इतना ही लिख पाया हूँ मैं….

बहुत मजबूत रिश्ते थे मेरे….
पर बहुत कमजोर लोगों से…..

दरवाज़े से घर

सुख कमाकर दरवाज़े से घर में
लाने की कोशिश करते रहे ,
पता ही ना चला कि कब ….
खिड़कियों से उम्र निकल गई .

लाजमी तो नही

लाजमी तो नही है…कि तुझे आँखों सेही देखूँ..

तेरी याद का आना भी तेरे
दीदार से कम नही…।”
लाजमी तो नही है…कि तुझे आँखों सेही देखूँ..

तेरी याद का आना भी तेरे
दीदार से कम नही…।”